तीजड़ी व्रत कथा | Teejri Vrat Katha in Hindi

तीजड़ी व्रत सिंधी समुदाय का एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिए करती हैं। यह व्रत भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर रक्षाबंधन के तीसरे दिन आता है। इस दिन महिलाएँ दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और रात्रि में चंद्रमा के उदय पर अर्घ्य अर्पित कर व्रत का पारण करती हैं।

तीजड़ी व्रत का विशेष महत्व इस बात में है कि यह केवल पति की दीर्घायु और परिवार की खुशहाली के लिए नहीं, बल्कि स्त्री की आत्मिक शुद्धि, धैर्य और समर्पण का भी प्रतीक है। इस व्रत में तीजड़ी माता की पूजा की जाती है, जो महिलाओं को सौभाग्य, सुख-शांति और संतोष प्रदान करती हैं।

यह व्रत महिलाओं को अपनी जिम्मेदारियों और रिश्तों में संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

व्रत करने की विधि:

  1. प्रातःकालीन तैयारी:
    • सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
    • पूजा स्थल को स्वच्छ और सुंदर सजाएं।
  2. पूजन सामग्री एकत्रित करें:
    • चावल, दूध, चीनी, खीरा, दीपक, फल, फूल, कुमकुम, रोली।
  3. सोलह श्रृंगार करें:
    • विवाहित महिलाएँ संपूर्ण श्रृंगार करती हैं।
  4. व्रत का संकल्प लें:
    • तीजड़ी माता का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें।
  5. चंद्रमा को अर्घ्य दें:
    • चंद्रमा के उदय पर दूध, चीनी, और चावल का मिश्रण अर्पित करें।
    • मंत्र का उच्चारण करें: “ॐ तीजड़ी मातायै नमः।”
  6. व्रत का पारण करें:
    • चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद सात्विक भोजन ग्रहण करें।

Teejri Mata Vrat Katha

बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक धर्मपरायण और धनी व्यापारी रहते थे, जिनका नाम लक्ष्मीचंद था। वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों—बेटी रूपवती और दो बेटे रमेश और क्रांतिकंद—के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। लक्ष्मीचंद का परिवार धार्मिक अनुष्ठानों में गहरी आस्था रखता था।

एक दिन लक्ष्मीचंद ने एक भव्य यज्ञ करने का निश्चय किया। इस शुभ अवसर पर उन्होंने अपनी बेटी रूपवती को भी इस पावन आयोजन में सम्मिलित करने का विचार किया। लक्ष्मीचंद ने अपने दोनों बेटों को अपनी बहन रूपवती को आमंत्रित करने के लिए उसके ससुराल भेजा।

रूपवती ने अपने भाइयों का प्रेमपूर्वक स्वागत किया और उन्हें भोजन करने और विश्राम करने का आग्रह किया। जब भाइयों ने रूपवती से भोजन करने के लिए कहा, तो रूपवती ने मना कर दिया। उसने बताया कि वह तीजड़ी माता का व्रत कर रही है और चंद्रमा के दर्शन के बाद ही भोजन करेगी।

भाइयों ने कहा कि वे भी उसके साथ चंद्रमा के उदय तक उपवास रखेंगे। लेकिन यात्रा की थकान और भूख ने भाइयों को बेचैन कर दिया। भूख से व्याकुल होकर, रूपवती का एक भाई पास के पेड़ पर चढ़ गया और एक थाली में जलता हुआ दीपक इस प्रकार से पकड़ लिया कि वह चंद्रमा जैसा प्रतीत हो। दूसरा भाई अंदर गया और रूपवती से कहा कि चंद्रमा निकल आया है।

रूपवती ने भाइयों की बात पर विश्वास कर चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित किया और व्रत तोड़ दिया। लेकिन व्रत की विधि सही ढंग से पूरी न होने के कारण उसके पति को लकवा मार गया।

रूपवती को जब इस धोखे का पता चला तो वह अत्यंत दुखी और पछताई। उसने अपने पति की पूरी सेवा की, लेकिन मन में ग्लानि बनी रही। उसी रात तीजड़ी माता ने रूपवती को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा, “तुम्हारे व्रत को सही तरीके से पूरा न करने के कारण यह संकट आया है। लेकिन यदि तुम पूरी श्रद्धा और विधि से अगली बार व्रत करोगी तो तुम्हारे पति का स्वास्थ्य पुनः ठीक हो जाएगा।”

समय बीता, और अगला teej vrat katha का पर्व आया। इस बार उसने पूरे विधि-विधान और श्रद्धा से व्रत किया। चंद्रमा के उदय पर उसने तीजड़ी माता की पूजा की और विधिपूर्वक अर्घ्य अर्पित किया। फिर उसने अपने पति को प्रसाद खिलाया।

तीजड़ी माता की कृपा से उसका पति चमत्कारिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ हो गया।

तीजड़ी व्रत कथा से मिलने वाली शिक्षा: सच्ची भक्ति और श्रद्धा से कोई भी संकट टल सकता है।

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