पापी देवराज का उद्धार | शिवपुराण कथा (Shiv Puran Story)

शिवपुराण, हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक, एक ऐसा ग्रंथ है जो न केवल भगवान शिव की महिमा का गान करता है, बल्कि हमें श्रद्धा, भक्ति, और मोक्ष का मार्ग भी दिखाता है। इसमें 24,000 श्लोक शामिल हैं, जो सात संहिताओं में विभाजित हैं।

भगवान शिव को अयोनिज (जिनका जन्म किसी माता के गर्भ से नहीं हुआ) और अजन्मा (जिनका कोई प्रारंभ नहीं) कहा जाता है। वे इस ब्रह्मांड के सृजनकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं।

इस महाग्रंथ का उद्देश्य है मानव जाति को अज्ञानता और पापों के अंधकार से बाहर निकालकर मोक्ष के प्रकाश की ओर ले जाना। शिवपुराण हमें यह सिखाता है कि भगवान शिव के प्रति सच्ची भक्ति और श्रद्धा के माध्यम से कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी पापी क्यों न हो, मोक्ष और शाश्वत आनंद को प्राप्त कर सकता है।

शिवपुराण: कथा का आरंभ – सूत जी का संवाद

बहुत समय पहले, नैमिषारण्य वन में महान ऋषियों का एक विशाल यज्ञ संपन्न हो रहा था। इस यज्ञ का उद्देश्य था कलियुग में पाप, अधर्म और अज्ञान के अंधकार से मुक्ति का मार्ग खोजना। यज्ञ के अंत में, वहां उपस्थित महान ऋषियों और मुनियों ने शिवपुराण का श्रवण करने का निर्णय लिया।

शिवपुराण, जो भगवान शिव की अमर गाथाओं, उनके दिव्य लीलाओं और अनंत कृपा का वर्णन करता है, को सर्वश्रेष्ठ पुराण माना गया। यह पुराण केवल कहानियों का संग्रह नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उत्थान का एक दिव्य साधन है।

यज्ञ समाप्त होने के पश्चात, शौनक ऋषि ने सूत जी से विनम्रतापूर्वक पूछा:

शौनक ऋषि: हे सूत जी! आप समस्त वेदों, पुराणों, और शास्त्रों के ज्ञाता हैं। कृपया हमें बताइए कि ऐसा कौन-सा पुराण है, जिसका श्रवण मात्र करने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है?”

कलियुग में जब मनुष्य वासना, क्रोध, और लोभ में फँसकर अपने वास्तविक उद्देश्य को भूल जाएगा, तब कौन-सा साधन उसे मोक्ष का मार्ग दिखा सकता है?

सूत जी: “हे महर्षि शौनक और समस्त ऋषिगण! आपके प्रश्न का उत्तर केवल एक ही ग्रंथ में निहित है – और वह है ‘शिवपुराण’। यह पुराण स्वयं भगवान शिव की अमर गाथाओं, उनके दिव्य लीलाओं और उनकी अपार करुणा का प्रतीक है। इस ग्रंथ का श्रवण करने मात्र से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, चाहे वह कितना भी दुराचारी क्यों न हो।

भगवान शिव अयोनिज (गर्भ से उत्पन्न न होने वाले) और अजन्मा (जिनका कोई प्रारंभ नहीं) हैं। वे इस संपूर्ण ब्रह्मांड के सृजन, पालन, और संहार के स्वामी हैं।

हे महर्षियों! आज मैं आपको ‘देवराज नामक एक पापी ब्राह्मण की कथा’ सुनाऊंगा, जिसने अपने जीवन में अनगिनत पाप किए, लेकिन केवल *शिवपुराण की कथा सुनने मात्र से मोक्ष प्राप्त किया।”

यह कथा प्रमाणित करती है कि भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का एक भी क्षण व्यर्थ नहीं जाता।

तो आइए, हम इस पवित्र कथा का श्रवण करें और भगवान शिव के करुणामय स्वरूप का अनुभव करें।

दुष्ट ब्राह्मण देवराज

एक समय की बात है, एक नगर में देवराज नाम का एक ब्राह्मण रहता था। जन्म से वह ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ था, लेकिन उसका जीवन अधर्म और पापों में लिप्त था। उसने कभी किसी धार्मिक कार्य में रुचि नहीं ली।

वह झूठ, छल, कपट, वासना, क्रोध और लालच में इस कदर डूबा हुआ था कि उसका हृदय कठोर और अज्ञान से भर चुका था। लोगों को धोखा देना, दूसरों का धन हड़पना, और दुर्व्यवहार करना उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था। वह न तो किसी पूजा-पाठ में रुचि लेता और न ही किसी साधु-संत के वचन सुनता।

समाज ने उसे अस्वीकार कर दिया था, लेकिन इसके बावजूद उसके हृदय में पश्चाताप की कोई जगह नहीं थी। धीरे-धीरे उसकी बुरी आदतों के कारण उसका जीवन संकट में पड़ गया।

अपनी दुष्टता और पापों से तंग आकर देवराज एक दिन नगर छोड़कर प्रयागराज (प्रयागपुर) पहुँचा। इस शहर को धर्म और तपस्या का केंद्र माना जाता था। यहाँ उसने देखा कि एक स्थान पर शिवपुराण की कथा हो रही थी।

कथा स्थल पर ऋषि-मुनि और भक्त श्रद्धा के साथ शिवपुराण का श्रवण कर रहे थे। वातावरण में शिव मंत्रों की गूंज और कथा वाचक की मधुर वाणी से पूरा स्थान दिव्यता से आलोकित था।

देवराज का मन, जो अब तक पापों से अंधकारमय था, उस कथा स्थल पर पहुँचते ही किसी अदृश्य शक्ति से प्रभावित हुआ। वह धीरे-धीरे कथा के पास जाकर बैठ गया।

हालांकि, उसकी बुरी आदतों का असर उसके शरीर पर भी दिखाई देने लगा। कथा के कुछ दिन बाद वह बीमार पड़ गया। तेज बुखार और दर्द ने उसे कमजोर कर दिया। लेकिन इसके बावजूद उसने कथा स्थल नहीं छोड़ा।

दिन बीतते गए, और वह वहीं पड़ा-पड़ा शिवपुराण की कथा सुनता रहा।

एक महीने के बाद, शिवपुराण का श्रवण करते हुए देवराज की मृत्यु हो गई। जैसे ही उसकी आत्मा शरीर को छोड़कर निकली, यमदूत (यमराज के दूत) वहाँ पहुँच गए।

यमदूतों ने देवराज की आत्मा को पकड़कर रस्सियों से बाँध दिया और उसे यमलोक ले जाने लगे। उनकी आँखों में क्रोध और कठोरता थी।

लेकिन तभी, एक दिव्य प्रकाश आकाश से प्रकट हुआ। शिवलोक से भगवान शिव के गण वहाँ पहुँचे। उनके हाथों में त्रिशूल था, उनके गले में रुद्राक्ष की माला झूल रही थी, और उनके शरीर से तेजस्वी प्रकाश निकल रहा था।

शिवगणों ने यमदूतों को रोका। उन्होंने कहा कि जिसने शिवपुराण का श्रवण किया है, उसे यमलोक ले जाने का अधिकार किसी को नहीं है। यमदूत उनके तेज से भयभीत हो गए और देवराज की आत्मा को मुक्त कर दिया।

शिवगणों ने देवराज को दिव्य विमान पर बिठाया और उसे लेकर कैलाश पर्वत की ओर चल पड़े।

यमलोक में इस घटना को देखकर यमराज स्वयं बाहर आए। उन्होंने शिवगणों का सम्मान किया और स्वीकार किया कि शिवपुराण का श्रवण करने वाला कोई भी व्यक्ति पापों से मुक्त हो जाता है और उसे यमलोक का भय नहीं होता।

दिव्य विमान कैलाश पहुँचा, जहाँ भगवान शिव स्वयं देवराज के स्वागत के लिए उपस्थित थे। भगवान शिव ने उसे देखा और कहा कि “शिवपुराण का श्रवण करने वाले को मोक्ष अवश्य मिलता है।”

देवराज, जो अपने जीवन में असंख्य पाप कर चुका था, अब भगवान शिव की कृपा से शिवलोक में दिव्य स्थान प्राप्त कर चुका था।

यहाँ से सूत जी कथा का वृतांत प्रारंभ करते हैं, जिसमें देवराज के जीवन की घटनाएँ, उसकी बुरी आदतें, और अंत में शिवपुराण के श्रवण से उसका उद्धार विस्तारपूर्वक वर्णित किया जाता है।

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