प्राचीन काल में बिहार के पश्चिमी क्षेत्र में घने जंगल और उपजाऊ खेत थे। इन जंगलों में यादव समुदाय के लोग अपने पशुओं को चराने और खेती करने का काम करते थे। लेकिन जंगल में कई खतरे भी थे—जंगली जानवर, प्राकृतिक आपदाएँ और बुरी शक्तियाँ जो गाँव वालों को परेशान करती थीं।
एक बार की बात है, एक यादव गड़रिया (चरवाहा) जिसका नाम बिरनाथ था, अपने पशुओं को लेकर जंगल में गया। वह एक साहसी और धर्मी व्यक्ति था, जो हमेशा अपने गाँव और पशुओं की रक्षा करता था। एक रात, जब वह जंगल में अपनी गायों और भैंसों के साथ था, अचानक एक भयानक राक्षस ने उस पर हमला कर दिया। यह राक्षस जंगल का आतंक था और गाँव वालों के पशुओं को मारकर उन्हें डराता था।

बिरनाथ ने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपनी लाठी और भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अटूट भक्ति के बल पर राक्षस से मुकाबला किया। लड़ाई के दौरान, भगवान कृष्ण की कृपा से बिरनाथ को अलौकिक शक्ति प्राप्त हुई। उसने राक्षस को परास्त कर दिया और जंगल को सुरक्षित बना दिया। लेकिन इस लड़ाई में बिरनाथ गंभीर रूप से घायल हो गया और उसने अपनी जान गँवा दी।
उसके बलिदान को देखकर भगवान कृष्ण प्रकट हुए और बिरनाथ को आशीर्वाद दिया कि वह अमर हो जाएगा और जंगल के रक्षक के रूप में पूजा जाएगा। भगवान कृष्ण ने कहा, “तुम्हारा नाम बिर कुअर के रूप में जाना जाएगा, और जो भी तुम्हारी पूजा करेगा, उसके पशु और खेत सुरक्षित रहेंगे।” तब से बिरनाथ को बिर कुअर के नाम से जाना जाने लगा, और उन्हें भगवान कृष्ण का एक रूप माना गया।
कहानी से सीख : बिर कुअर की कहानी हमें सिखाती है कि साहस और अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा हर मुश्किल परिस्थिति में विजय दिला सकती है। बिरनाथ ने बिना डरे मुगल सैनिकों का सामना किया और मधुमती को बचाया, जो उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।