श्री सत्यनारायण व्रत कथा | Satya Narayan Katha

आज हम आपके लिए लेकर आए हैं भगवान श्री सत्यनारायण की पावन व्रत कथा। इस कथा का श्रवण करने और इसका पालन करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं, दुखों का निवारण होता है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए इस महिमा से भरी कथा को ध्यानपूर्वक सुनें।

कथा का प्रारंभ

नैमिषारण्य तीर्थ में एक बार शौनक आदि ऋषियों ने महर्षि सूतजी से पूछा, “हे महर्षि! ऐसा कौन-सा व्रत है, जिसके करने से मनुष्य को इच्छित फल, सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है?”

सूतजी ने उत्तर दिया, “हे मुनिवरों! यह प्रश्न देवर्षि नारद ने भी भगवान विष्णु से पूछा था। मैं आपको वही कथा सुनाता हूं।”

सूतजी ने आगे कहा, “हे मुनियों! ध्यानपूर्वक सुनिए, मैं आपको भगवान सत्यनारायण व्रत की अद्भुत कथा सुनाता हूं, जिसे सुनने और करने से मनुष्य के सभी दुखों का नाश होता है।”

सूत जी ने मुनियों की जिज्ञासा को शांत करने के लिए कथा का प्रथम अध्याय आरंभ किया:

पहला अध्याय: नारद मुनि और भगवान विष्णु का संवाद

सूत जी ने मुनियों की जिज्ञासा को शांत करने के लिए कथा का प्रथम अध्याय आरंभ किया:

“हे मुनियों! मैं आपको वह कथा सुनाता हूँ, जो नारद मुनि और भगवान विष्णु के बीच हुई थी।”

एक बार नारद मुनि पृथ्वी लोक पर भ्रमण कर रहे थे। उन्होंने देखा कि जीव अपने-अपने कर्मों के अनुसार अनेक प्रकार के दुख भोग रहे हैं। कोई निर्धनता, कोई बीमारी, तो कोई पारिवारिक कष्टों से पीड़ित था। नारद मुनि का हृदय करुणा से भर गया और वे सोचने लगे, “क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे इन प्राणियों के दुखों का नाश हो सके?”

यह विचार कर नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान विष्णु को अपने शंख, चक्र, गदा और पद्म से सुसज्जित, पीतांबर वस्त्र धारण किए हुए और वनमाला पहने देखा। भगवान के मुखमंडल पर दिव्य आभा थी।

नारद मुनि ने हाथ जोड़कर भगवान की स्तुति की: “हे अनंत, हे भगवान विष्णु! आप सृष्टि के कर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। आप भक्तों के दुखों का नाश करने वाले हैं। हे प्रभु! मैं आपको प्रणाम करता हूं।”

भगवान विष्णु मुस्कुराए और बोले: “हे नारद! तुम यहां कैसे आए? मैं जानता हूं कि तुम लोक कल्याण के लिए यहां आए हो। बताओ, तुम्हारे मन में क्या प्रश्न है?”

नारद मुनि बोले: “हे प्रभु! मैं पृथ्वी लोक से आया हूं। वहां मैंने देखा कि लोग अपने पाप कर्मों के कारण विभिन्न योनियों में जन्म लेते हैं और अनेक दुख भोगते हैं। कृपया मुझे ऐसा उपाय बताएं, जिससे वे सभी प्राणी अपने दुखों से मुक्त हो सकें और सुख-शांति का अनुभव कर सकें।”

भगवान विष्णु ने कहा: “हे नारद! तुमने बहुत उत्तम प्रश्न किया है। मैं तुम्हें एक ऐसा उपाय बताता हूं, जिससे मनुष्य के सभी दुख समाप्त हो जाएंगे। वह उपाय है सत्यनारायण व्रत। यह व्रत करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट होते हैं और उसे सुख, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।”

नारद मुनि ने भगवान से पूछा: “हे प्रभु! कृपया इस व्रत की विधि और इसके फल के विषय में विस्तार से बताइए ताकि मैं इसे पृथ्वी लोक के लोगों को बता सकूं।”

भगवान विष्णु ने कहा: “हे नारद! सत्यनारायण व्रत करने के लिए मनुष्य को श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत को कोई भी व्यक्ति—धनी हो या निर्धन, स्त्री हो या पुरुष—कर सकता है। इस व्रत को करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति आती है।”

भगवान विष्णु ने आगे कहा: “हे नारद! इस व्रत को करने के लिए भक्त को केले, दूध, गेहूं का चूर्ण, घी, शक्कर और अन्य पूजन सामग्री एकत्र करनी चाहिए। शाम के समय भगवान सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिए और कथा का श्रवण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और प्रसाद का वितरण करना चाहिए। इस व्रत का पालन करने से मनुष्य को अवश्य ही इच्छित फल की प्राप्ति होती है।”

नारद मुनि ने भगवान विष्णु को प्रणाम किया और कहा: “हे प्रभु! आपने मुझे जो यह उपाय बताया, वह अत्यंत सरल और प्रभावकारी है। मैं इसे पृथ्वी लोक पर सभी को बताऊंगा।”

भगवान विष्णु ने नारद मुनि को आशीर्वाद दिया और कहा: “हे नारद! यह व्रत कलियुग में विशेष फलदायक होगा। जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ सत्यनारायण व्रत करेगा, वह अवश्य ही सुख, शांति और मोक्ष को प्राप्त करेगा।”

नारद मुनि भगवान विष्णु का आशीर्वाद लेकर पृथ्वी लोक पर लौट आए और उन्होंने इस व्रत की महिमा को सभी प्राणियों को सुनाया।

सूत जी ने कहा: “हे मुनियों! इस प्रकार नारद मुनि ने भगवान विष्णु के आशीर्वाद से सत्यनारायण व्रत की महिमा का प्रचार किया। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति सभी दुखों से मुक्त हो जाता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है।”

दूसरा अध्याय: निर्धन ब्राह्मण की कथा

सूत जी ने मुनियों की ओर देखते हुए कहा: “हे मुनियों! अब मैं आपको दूसरे अध्याय की कथा सुनाता हूँ, जिसमें एक निर्धन ब्राह्मण के जीवन में भगवान सत्यनारायण व्रत के प्रभाव से आए परिवर्तन का वर्णन है। ध्यानपूर्वक सुनें।”

प्राचीन समय की बात है, काशी नामक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। वह अत्यंत गरीब था और भिक्षा मांगकर अपनी आजीविका चलाता था। उसके पास कोई संपत्ति, धन, या घर नहीं था। वह दिनभर नगर के विभिन्न हिस्सों में भिक्षा मांगता और जो कुछ मिलता, उसी से अपना और अपने परिवार का पेट भरता।

एक दिन, वह ब्राह्मण अत्यंत दुखी होकर गंगा तट पर बैठा रो रहा था। वह सोच रहा था, “क्या मेरा जीवन इसी प्रकार व्यतीत होगा? क्या मैं कभी इस दरिद्रता से मुक्त हो पाऊंगा?”

उसी समय, भगवान विष्णु ने उसकी पुकार सुन ली। वे वृद्ध ब्राह्मण के वेश में उसके सामने प्रकट हुए और बोले: “हे विप्र! तुम इतने दुखी क्यों हो? तुम किस चिंता में बैठे हो? अपनी समस्या मुझे बताओ।”

ब्राह्मण ने सिर झुकाकर उत्तर दिया: “हे स्वामी! मैं अत्यंत निर्धन हूँ। मेरे पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है। यदि कोई उपाय हो जिससे मेरी दरिद्रता समाप्त हो सके, तो कृपया मुझे बताएं।”

वृद्ध ब्राह्मण के वेश में भगवान विष्णु ने मुस्कुराते हुए कहा: “हे विप्र! यदि तुम अपनी दरिद्रता से मुक्त होना चाहते हो, तो श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान सत्यनारायण का व्रत करो। यह व्रत अत्यंत प्रभावशाली है और इससे तुम्हारे सभी दुख समाप्त हो जाएंगे।”

ब्राह्मण ने आश्चर्य से पूछा: “हे स्वामी! यह व्रत कैसे किया जाता है? कृपया मुझे इसकी विधि बताएं।”

भगवान ने उत्तर दिया: “हे ब्राह्मण! सत्यनारायण व्रत करने के लिए केले, गेहूं का आटा, घी, दूध और शक्कर का उपयोग करो। शाम के समय भगवान सत्यनारायण की पूजा करो, कथा का श्रवण करो और प्रसाद का वितरण करो। इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से तुम्हारी सभी इच्छाएं पूर्ण होंगी और दरिद्रता दूर हो जाएगी।”

इतना कहकर भगवान विष्णु, वृद्ध ब्राह्मण का वेश त्यागकर अंतर्ध्यान हो गए।

उस रात ब्राह्मण को नींद नहीं आई। उसके मन में भगवान की बातें घूमती रहीं। उसने निश्चय किया: “कल मैं भिक्षा मांगकर जो कुछ भी प्राप्त करूंगा, उससे भगवान सत्यनारायण का व्रत करूंगा।”

अगले दिन सुबह ब्राह्मण भिक्षा मांगने निकला। आश्चर्य की बात यह थी कि उसे उस दिन पहले की तुलना में कहीं अधिक भिक्षा मिली। उसने केले, दूध, घी, गेहूं का चूरा और शक्कर खरीदी।

शाम के समय, उसने विधिपूर्वक भगवान सत्यनारायण का व्रत किया। उसने भगवान की पूजा की, कथा का श्रवण किया और प्रसाद बांटा। पूजा के बाद, उसके मन में एक अद्भुत शांति थी।

व्रत समाप्त होने के बाद, ब्राह्मण के जीवन में चमत्कार होने लगे। अगले दिन उसे भिक्षा में पहले से कहीं अधिक धन मिला। धीरे-धीरे उसकी दरिद्रता दूर हो गई। उसने एक छोटा-सा व्यापार शुरू किया और उसकी आय बढ़ने लगी।

कुछ ही समय में, वह एक संपन्न व्यक्ति बन गया। उसके घर में सुख-शांति का वास हो गया।

ब्राह्मण ने अपनी समृद्धि का श्रेय भगवान सत्यनारायण के व्रत को दिया और प्रत्येक पूर्णिमा को श्रद्धा और भक्ति के साथ यह व्रत करने लगा।

सूत जी ने कहा: “हे मुनियों! इस प्रकार निर्धन ब्राह्मण ने भगवान सत्यनारायण व्रत के प्रभाव से अपनी दरिद्रता को दूर कर सुख-समृद्धि प्राप्त की। यह व्रत न केवल दरिद्रता को समाप्त करता है, बल्कि मनुष्य को मोक्ष भी प्रदान करता है। जो भी व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ इस व्रत को करता है, उसके जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।”

अब मैं आपको तीसरे अध्याय की कथा सुनाता हूँ, जिसमें एक लकड़हारे के जीवन में इस व्रत के प्रभाव का वर्णन किया गया है।”

तीसरा अध्याय: लकड़हारे की कथा

प्राचीन काल में एक साधारण लकड़हारा था, जो जंगल से लकड़ियां काटकर उन्हें बाजार में बेचता और अपनी आजीविका चलाता था। वह अत्यंत गरीब था और दिन-रात परिश्रम करता, लेकिन उसकी आय इतनी कम थी कि वह मुश्किल से अपने परिवार का पेट भर पाता।

एक दिन लकड़हारा जंगल में लकड़ियां काटते हुए अत्यंत थका हुआ एक वृक्ष के नीचे बैठ गया। उसे भूख और प्यास लग रही थी। उसी समय उसने पास के एक घर से मंत्रोच्चार और भजन-कीर्तन की मधुर ध्वनि सुनी।

लकड़हारा उठकर उस ओर बढ़ा। उसने देखा कि एक ब्राह्मण श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहा है।

लकड़हारे ने आदरपूर्वक ब्राह्मण को प्रणाम किया और पूछा: “हे ब्राह्मण देव! आप कौन-सा व्रत कर रहे हैं, और इससे क्या फल प्राप्त होता है? कृपया मुझे विस्तार से बताएं।”

ब्राह्मण ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया: “हे लकड़हारे! मैं भगवान सत्यनारायण का व्रत कर रहा हूँ। यह व्रत अत्यंत चमत्कारी है। इसे करने से मनुष्य की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं, दुखों का नाश होता है, और जीवन में सुख-शांति आती है।”

लकड़हारे ने आश्चर्यचकित होकर पूछा: “हे विप्र! मैं अत्यंत गरीब हूँ। क्या मैं भी यह व्रत कर सकता हूँ? कृपया मुझे इसकी विधि बताएं।”

ब्राह्मण ने कहा: “हे लकड़हारे! यह व्रत कोई भी कर सकता है। तुम्हें केवल श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान सत्यनारायण की पूजा करनी है। केले, दूध, घी, गेहूं का चूरा और शक्कर से प्रसाद बनाना है। कथा का श्रवण करना है और प्रसाद को बांटना है। भगवान सत्यनारायण अवश्य तुम्हारी मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे।”

लकड़हारा प्रसन्न हो गया और उसने संकल्प लिया: “आज लकड़ी बेचकर जो धन मिलेगा, उससे मैं भगवान सत्यनारायण का व्रत करूंगा।”

उस दिन लकड़हारे ने पहले से अधिक मेहनत की और लकड़ियों को बाजार में बेचने के लिए शहर गया। भगवान सत्यनारायण की कृपा से उस दिन लकड़ियों का दुगुना मूल्य मिला।

लकड़हारे का हृदय आनंद से भर गया। उसने सोचा: “यह भगवान सत्यनारायण की कृपा है। अब मैं व्रत करूंगा।”

लकड़हारे ने केले, दूध, घी, गेहूं का चूरा और शक्कर खरीदी। वह घर लौटा और श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान सत्यनारायण का व्रत करने की तैयारी करने लगा।

शाम के समय, लकड़हारे ने विधिपूर्वक भगवान सत्यनारायण की पूजा की, कथा का श्रवण किया और प्रसाद तैयार करके बांटा। उसने भगवान से प्रार्थना की: “हे भगवान सत्यनारायण! कृपा करके मेरी दरिद्रता को समाप्त करें और मेरे जीवन में सुख-शांति लाएं।”

व्रत के समाप्त होने के बाद, लकड़हारे के जीवन में धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगा। अगले दिन उसने जंगल से लकड़ियां काटकर बाजार में बेचीं, और उसे पहले से कहीं अधिक धन प्राप्त हुआ।

कुछ ही दिनों में लकड़हारा एक संपन्न व्यक्ति बन गया। उसने अपने परिवार के लिए एक सुंदर घर बनवाया और अपनी आजीविका को व्यवस्थित कर लिया।

लकड़हारे ने निश्चय किया कि वह हर महीने पूर्णिमा के दिन श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान सत्यनारायण का व्रत करेगा।

सूत जी ने कहा: “हे मुनियों! इस प्रकार भगवान सत्यनारायण के व्रत के प्रभाव से एक साधारण लकड़हारा, जो दिन-रात कठिन श्रम करता था और फिर भी दरिद्र था, वह सुख-समृद्धि प्राप्त कर सका।”

“इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी दुख दूर हो जाते हैं, और उसे धन, सुख, और शांति की प्राप्ति होती है। जो भी व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ इस व्रत को करता है, वह अवश्य ही भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करता है।”

चौथा अध्याय: साधु वणिक की कथा

सूत जी ने मुनियों की ओर देखते हुए कहा: “हे मुनियों! अब मैं आपको चौथे अध्याय की कथा सुनाता हूँ, जिसमें एक व्यापारी साधु के जीवन में भगवान सत्यनारायण व्रत के चमत्कार का वर्णन है। यह कथा अत्यंत प्रेरणादायक है, इसे ध्यानपूर्वक सुनें।”

प्राचीन काल में एक साधु नामक धनी व्यापारी था। वह ईमानदार और धर्मपरायण व्यक्ति था, लेकिन उसके जीवन में एक कमी थी—उसे कोई संतान नहीं थी। उसकी पत्नी, लीलावती, भी संतान न होने के कारण बहुत दुखी रहती थी।

एक दिन साधु वणिक व्यापार के सिलसिले में यात्रा पर निकला। रास्ते में उसने देखा कि राजा भद्रशाल नदी के तट पर भगवान सत्यनारायण का व्रत कर रहे थे। राजा श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान की पूजा कर रहे थे।

साधु वणिक ने राजा से पूछा: “हे राजन! आप कौन-सा व्रत कर रहे हैं, और इससे क्या लाभ होता है?”

राजा ने उत्तर दिया: “हे वणिक! मैं भगवान सत्यनारायण का व्रत कर रहा हूँ। यह व्रत अत्यंत फलदायी है। इसके करने से संतान, धन, और सुख की प्राप्ति होती है।”

साधु वणिक ने राजा की बातों को ध्यानपूर्वक सुना और निश्चय किया: “यदि मुझे संतान प्राप्त होगी, तो मैं भी भगवान सत्यनारायण का व्रत करूंगा।”

कुछ समय बाद, साधु वणिक को भगवान की कृपा से एक सुंदर पुत्री की प्राप्ति हुई। उन्होंने उसका नाम कलावती रखा। धीरे-धीरे कलावती बड़ी होने लगी और अपने गुणों व सुंदरता से सबका मन मोहने लगी।

लेकिन समय के साथ साधु वणिक अपने व्रत के संकल्प को भूल गया। जब कलावती विवाह योग्य आयु की हुई, तो साधु वणिक ने उसका विवाह एक योग्य वर से कर दिया।

विवाह के बाद साधु वणिक अपने दामाद के साथ व्यापार करने समुद्री यात्रा पर निकल गया।

समुद्र के किनारे एक सुंदर नगरी थी, जहां साधु वणिक और उसका दामाद व्यापार कर रहे थे। लेकिन भगवान सत्यनारायण उनके संकल्प के विस्मरण से रुष्ट हो गए।

उसी समय, राजा चंद्रकेतु के खजाने से चोरी हो गई। चोरों ने सारा धन साधु वणिक के पास छोड़ दिया और भाग गए। राजा के सैनिकों ने साधु वणिक और उसके दामाद को पकड़ लिया और उन्हें कारागार में डाल दिया।

वहां कारागार में बैठे साधु वणिक ने अपने संकल्प को याद किया।

उसने भगवान सत्यनारायण से प्रार्थना की: “हे भगवान सत्यनारायण! मैं अपने संकल्प को भूल गया। कृपा करके मुझे क्षमा करें और इस संकट से मुक्त करें। मैं आपके व्रत का पालन करूंगा।”

उधर, साधु वणिक की पत्नी लीलावती और पुत्री कलावती को उनके कारागार में होने का समाचार मिला। वे अत्यंत दुखी हुईं।

जब साधु वणिक और उनका दामाद कारागार में थे, तब लीलावती और कलावती को भयंकर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। कई दिनों तक घर में पर्याप्त भोजन नहीं था।

इस कठिनाई से विवश होकर, एक दिन कलावती भूख से व्याकुल होकर भोजन की तलाश में बाहर निकल पड़ी और इसी दौरान उसने एक ब्राह्मण के घर में सत्यनारायण भगवान का व्रत और कथा सुनी।

उसने अपनी मां लीलावती से कहा: “हे माता! मैंने सत्यनारायण भगवान के व्रत की कथा सुनी है। यदि हम यह व्रत श्रद्धा और भक्ति से करेंगे, तो पिताजी और दामाद जी को अवश्य मुक्ति मिलेगी।”

मां-बेटी ने उसी दिन भगवान सत्यनारायण का व्रत किया। उन्होंने श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान की पूजा की, कथा सुनी, और प्रसाद बांटा।

भगवान सत्यनारायण उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और राजा चंद्रकेतु को स्वप्न में दर्शन देकर कहा: “हे राजन! तुमने जिन व्यापारियों को कारागार में बंद कर रखा है, वे निर्दोष हैं। उन्हें मुक्त करो और उनका धन लौटा दो, अन्यथा तुम्हारे राज्य का नाश हो जाएगा।”

प्रातःकाल होते ही राजा ने सैनिकों को आदेश दिया कि साधु वणिक और उसके दामाद को मुक्त किया जाए। राजा ने उन्हें उनका धन भी लौटा दिया और आदरपूर्वक उन्हें विदा किया।

सूत जी ने कहा: “हे मुनियों! इस प्रकार साधु वणिक ने भगवान सत्यनारायण का व्रत कर अपने संकटों से मुक्ति पाई और सुख-समृद्धि का जीवन बिताया। जो भी व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ इस व्रत को करता है, उसके सभी दुख समाप्त हो जाते हैं।”

पाँचवां अध्याय: राजा तुंगध्वज की कथा

सूत जी ने मुनियों की ओर देखते हुए कहा: “हे मुनियों! अब मैं आपको सत्यनारायण व्रत की पाँचवीं कथा सुनाता हूँ, जिसमें राजा तुंगध्वज के जीवन में भगवान सत्यनारायण व्रत का प्रभाव बताया गया है। इस कथा को ध्यानपूर्वक सुनें।”

प्राचीन काल में तुंगध्वज नाम का एक प्रतापी राजा हुआ करता था। वह एक पराक्रमी, ज्ञानी और धर्मपरायण शासक था। उसके राज्य में प्रजा सुखी और संपन्न थी। लेकिन राजा तुंगध्वज में धीरे-धीरे अहंकार आ गया।

एक दिन राजा तुंगध्वज अपने सैनिकों के साथ शिकार के लिए जंगल गया। शिकार करते-करते वह अत्यंत थक गया और एक विशाल वटवृक्ष के नीचे विश्राम करने लगा।

वहीं पास में कुछ ग्वाले भगवान सत्यनारायण का व्रत कर रहे थे। वे अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे थे।

ग्वालों ने राजा तुंगध्वज को देखकर कहा: “हे राजन! कृपया हमारे साथ बैठकर भगवान सत्यनारायण का प्रसाद ग्रहण करें।”

लेकिन अहंकार से भरे राजा ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया और हँसते हुए कहा: “तुम लोग इस साधारण पूजा से क्या प्राप्त करोगे? मैं राजा हूँ, मुझे इस प्रसाद की आवश्यकता नहीं है।”

राजा ने प्रसाद का अपमान किया और बिना कुछ खाए वहाँ से चला गया।

भगवान सत्यनारायण अपने भक्तों के अपमान को सहन नहीं करते। राजा तुंगध्वज के अहंकार और प्रसाद के अपमान के कारण भगवान रुष्ट हो गए।

जैसे ही राजा अपने महल पहुँचा, उसके राज्य में अनेक आपदाएँ आने लगीं।

  • खेतों में फसलें सूख गईं।
  • राज्य में अकाल पड़ गया।
  • राजा के 100 पुत्र अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गए।
  • राजा का खजाना खाली हो गया और राज्य में अशांति फैल गई।

राजा तुंगध्वज को अब अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने अपने कृत्य पर गहरा पश्चाताप किया और सोचा:
“निश्चित ही यह सब भगवान सत्यनारायण के व्रत और प्रसाद के अपमान के कारण हुआ है। मुझे उनसे क्षमा मांगनी चाहिए।”

राजा तुंगध्वज ने ग्वालों से क्षमा मांगी और उनसे सत्यनारायण व्रत की विधि जानी।

ग्वालों ने कहा: “हे राजन! भगवान सत्यनारायण का व्रत श्रद्धा और भक्ति से करें। केले, दूध, घी, गेहूं का चूरा, और शक्कर का प्रसाद बनाएं। कथा का श्रवण करें और प्रसाद का वितरण करें।”

राजा तुंगध्वज ने उसी दिन अपने महल में भगवान सत्यनारायण का व्रत करने का निश्चय किया।

शाम के समय राजा ने विधिपूर्वक व्रत किया। उसने केले, दूध, घी, गेहूं का चूरा, और शक्कर से प्रसाद तैयार करवाया। राजा ने भक्तिभाव से भगवान सत्यनारायण की पूजा की, कथा का श्रवण किया और प्रसाद को ब्राह्मणों तथा प्रजा में बांटा।

पूजा के अंत में राजा ने भगवान से प्रार्थना की: “हे भगवान सत्यनारायण! मैं अपने अहंकार और अज्ञान के कारण आपके व्रत और प्रसाद का अपमान कर बैठा। कृपया मुझे क्षमा करें और मेरे राज्य को पुनः सुख-समृद्धि से भर दें।”

भगवान सत्यनारायण राजा की श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा को आशीर्वाद दिया: “हे तुंगध्वज! तुम्हारा अहंकार अब समाप्त हो गया है। तुम्हारे राज्य में पुनः सुख-शांति और समृद्धि लौट आएगी। तुम्हारे पुत्र पुनः जीवित हो जाएंगे और तुम्हारे राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ेगा।”

भगवान का आशीर्वाद मिलते ही राजा तुंगध्वज के राज्य में चमत्कार होने लगे:

  • मृत पुत्र पुनः जीवित हो गए।
  • खेतों में हरियाली छा गई।
  • खजाना पुनः भर गया।
  • राज्य में सुख-शांति और समृद्धि लौट आई।

राजा तुंगध्वज ने इस चमत्कार को भगवान सत्यनारायण की कृपा माना और जीवनभर प्रत्येक पूर्णिमा को श्रद्धा और भक्ति के साथ सत्यनारायण व्रत करने का संकल्प लिया।

सूत जी ने कहा: “हे मुनियों! इस प्रकार राजा तुंगध्वज ने भगवान सत्यनारायण के व्रत के प्रभाव से अपने सभी कष्टों से मुक्ति पाई। यह व्रत अत्यंत प्रभावशाली है और श्रद्धा व विश्वास के साथ इसे करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और उसे सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।”

जो व्यक्ति इस व्रत को करता है और कथा का श्रवण करता है, उसे इस लोक में सुख और परलोक में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अब मैं आपको व्रत की विधि और कथा के उपसंहार का विवरण दूंगा। ध्यानपूर्वक सुनें।

व्रत का विधान और उपसंहार

सूत जी ने मुनियों को देखा और कहा: हे मुनियों! अब मैं आपको भगवान सत्यनारायण व्रत की विधि और उपसंहार के बारे में विस्तार से बताता हूँ। यह व्रत अत्यंत सरल, प्रभावशाली और शीघ्र फलदायी है। इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से मनुष्य की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

व्रत का विधान

1. व्रत का संकल्प:

  • व्रत करने वाला व्यक्ति पहले व्रत का संकल्प ले।
  • संकल्प में मन, वचन और कर्म से शुद्ध होकर भगवान सत्यनारायण का स्मरण करे।
  • किसी शुभ तिथि (पूर्णिमा, संक्रांति, एकादशी या अन्य शुभ दिन) पर व्रत किया जा सकता है।

2. पूजन सामग्री:

  • केले के पत्ते
  • दूध
  • घी
  • गेहूं का चूरा (आटा)
  • शक्कर या गुड़
  • फल (विशेषकर केले)
  • पुष्प
  • तुलसी दल
  • कलश (जल से भरा हुआ)
  • धूप, दीप, कपूर
  • नारियल
  • पंचामृत (दूध, दही, शक्कर, घी और शहद का मिश्रण)

3. पूजा का स्थान और तैयारी:

  • पूजा के लिए घर के किसी स्वच्छ स्थान पर भगवान सत्यनारायण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • पूजा स्थल को केले के पत्तों और फूलों से सजाएं।
  • एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान का चित्र या मूर्ति रखें।

4. पूजा की विधि:

  1. संकल्प: व्रतकर्ता संकल्प लेकर पूजा का आरंभ करे।
  2. कलश स्थापन: जल से भरे कलश को स्थापित करें और उस पर नारियल रखें।
  3. भगवान का आह्वान: भगवान सत्यनारायण का आह्वान करें।
  4. अर्चना: भगवान को पुष्प, अक्षत, तुलसी दल, और फल अर्पित करें।
  5. प्रसाद की तैयारी: गेहूं के आटे, घी, दूध और शक्कर से प्रसाद तैयार करें।
  6. कथा का श्रवण: सत्यनारायण भगवान की कथा का श्रवण करें।
  7. आरती: भगवान सत्यनारायण की आरती करें।
  8. प्रसाद वितरण: व्रत समाप्त होने के बाद प्रसाद का वितरण करें।

5. ब्राह्मण भोजन:

  • ब्राह्मणों और जरुरतमंदों को भोजन कराएं।
  • उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें।

6. स्वयं प्रसाद ग्रहण करें:

  • अंत में व्रत करने वाले और परिवार के सभी सदस्य प्रसाद ग्रहण करें।

व्रत का महत्व और फल:

  • इस व्रत को करने से जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं।
  • भक्त को धन, संतान, सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • इस व्रत का पालन करने से मनुष्य के पूर्व जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • यह व्रत विशेष रूप से कलियुग में अत्यंत फलदायी माना गया है।

सूत जी ने कथा को समाप्त करते हुए कहा: “हे मुनियों! इस प्रकार भगवान सत्यनारायण का व्रत और कथा जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने वाला है। जो व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ इस व्रत को करता है और कथा का श्रवण करता है, उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।”

“इस व्रत को करने से दरिद्र धनवान बन जाता है, निःसंतान को संतान की प्राप्ति होती है, रोगी स्वस्थ हो जाता है और भयभीत व्यक्ति निर्भय हो जाता है।”

“यह व्रत अत्यंत सरल है और हर वर्ग, जाति, और धर्म का व्यक्ति इसे कर सकता है।”

“हे भक्तों! जो इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करते हैं, वे इस लोक में सुख भोगते हैं और परलोक में भगवान विष्णु के दिव्य धाम वैकुंठ की प्राप्ति करते हैं।”

“इसलिए आप सबको चाहिए कि भगवान सत्यनारायण का व्रत करें, कथा का श्रवण करें, और अपने जीवन को सुख-शांति से भरपूर बनाएं।”

भगवान सत्यनारायण की कृपा से यह कथा यथासंभव पूर्ण हुई। जो भक्त इस कथा को पढ़ते हैं, सुनते हैं, और दूसरों को सुनाते हैं, वे निश्चित रूप से भगवान विष्णु के आशीर्वाद से समस्त इच्छाओं की पूर्ति करते हैं और अंत में मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

यदि आपको यह कथा और विधान पसंद आया हो, तो कृपया हमें कमेंट में बताएं। इस कथा को दूसरों के साथ साझा करें और भगवान सत्यनारायण का आशीर्वाद प्राप्त करें। धन्यवाद!

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