बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल में शील नाम के एक मुनि रहते थे। शील मुनि ब्रह्मचारी थे और उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान की भक्ति में बिता दिया। वे हमेशा ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और भगवान की सेवा में लगे रहते थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, शील मुनि बूढ़े हो गए। उन्हें चिंता होने लगी कि उनके बाद उनका वंश आगे कैसे बढ़ेगा, क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी।
शील मुनि ने सोचा, “अगर मैं संतान के बिना चला गया, तो मेरा वंश खत्म हो जाएगा। मुझे एक ऐसे पुत्र की जरूरत है जो अमर हो और जिसे मृत्यु भी न छू सके।” इस इच्छा को पूरा करने के लिए उन्होंने इंद्रदेव की कठिन तपस्या करने का फैसला किया। एक दिन, इंद्रदेव उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुए। इंद्रदेव ने कहा, “शील मुनि, मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत खुश हूँ। बताओ, तुम्हें क्या चाहिए?”

शील मुनि ने हाथ जोड़कर कहा, “हे इंद्रदेव, मुझे एक ऐसा पुत्र चाहिए जो अमर हो और जिसे मृत्यु भी न मार सके।” इंद्रदेव ने जवाब दिया, “ऐसा पुत्र देना मेरे बस की बात नहीं है। यह इच्छा तो केवल भगवान शिव ही पूरी कर सकते हैं। तुम उनकी तपस्या करो, वे तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी करेंगे।”
इंद्रदेव की सलाह मानकर शील मुनि जंगल में एकांत जगह पर गए और भगवान शिव की कठिन तपस्या शुरू कर दी। कई सालों तक उन्होंने कठोर तप किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए। शिवजी ने कहा, “शील मुनि, मैं तुम्हारी तपस्या से खुश हूँ। बताओ, तुम क्या चाहते हो?”
शील मुनि ने कहा, “प्रभु, मुझे एक ऐसा पुत्र चाहिए जो अमर हो और जिसे मृत्यु भी न छू सके।” भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं जगत का पिता हूँ, फिर भी तुम मेरा पिता बनना चाहते हो। तुम्हारी इच्छा पूरी होगी।” इसके बाद भगवान शिव ने एक यज्ञ किया, और उस यज्ञ कुंड से एक सुंदर बालक प्रकट हुआ। उस बालक का चेहरा बहुत ही मनमोहक था। शील मुनि उसे देखकर बहुत खुश हुए और उसे अपने साथ घर ले गए।
उन्होंने उस बालक का नाम नंदी रखा और उसका पालन-पोषण शुरू किया। देखते ही देखते नंदी बड़ा होने लगा। जब नंदी 5 साल का हुआ, तो शील मुनि ने उसे वेद और शास्त्रों की शिक्षा दी। नंदी बहुत बुद्धिमान था और उसने सारी विद्या जल्दी सीख ली। जब नंदी 7 साल का हुआ, तो एक दिन शील मुनि के घर दो सन्यासी आए, जिनके नाम मित्र और वरुण थे। नंदी ने उनकी बहुत अच्छे से सेवा की और उन्हें भोजन कराया। सन्यासी बहुत खुश हुए और शील मुनि को लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया। लेकिन उन्होंने नंदी को कोई आशीर्वाद नहीं दिया।
शील मुनि ने सन्यासियों से पूछा, “आपने मुझे तो आशीर्वाद दिया, लेकिन मेरे बेटे नंदी को क्यों नहीं?” सन्यासियों ने दुखी होकर कहा, “हमें यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है, लेकिन नंदी की आयु बहुत कम है। उसके पास केवल 1 साल का समय बचा है। इसलिए हमने उसे आशीर्वाद नहीं दिया।”
यह सुनकर शील मुनि बहुत दुखी हो गए और नंदी को गले लगाकर रोने लगे। नंदी ने पूछा, “पिताजी, आप क्यों रो रहे हैं?” शील मुनि ने कहा, “बेटा, सन्यासियों ने बताया कि तुम अल्पायु हो। यह सुनकर मेरा दिल टूट गया है।” नंदी ने हँसते हुए कहा, “पिताजी, आपने मुझे भगवान शिव के आशीर्वाद से पाया है। मेरी रक्षा भी वही करेंगे। आप चिंता न करें।”
अगले दिन, नंदी ने अपने पिता से आज्ञा ली और नदी किनारे जाकर भगवान शिव की तपस्या शुरू कर दी। उसकी कठिन तपस्या देखकर भगवान शिव कुछ समय बाद उसके सामने प्रकट हुए। लेकिन नंदी भगवान शिव को देखकर इतना खुश हुआ कि वह अपनी इच्छा भूल गया। उसने कहा, “प्रभु, मैं बस आपके चरणों में रहना चाहता हूँ। मुझे अपने पास जगह दे दीजिए।”
भगवान शिव ने कहा, “नंदी, तुम मेरे ही अंश हो। तुम अमर बनकर सदा मेरे साथ रहोगे। मेरी कृपा से तुम्हें मृत्यु कभी नहीं छू सकेगी।” इसके बाद, भगवान शिव ने पार्वती माता से कहा, “मैं नंदी को गणों का अध्यक्ष बनाना चाहता हूँ।” माता पार्वती ने सहमति दी, और नंदी को गणों का अध्यक्ष बनाया गया। तब से नंदी भगवान शिव के साथ उनकी मूर्ति के रूप में पूजे जाते हैं।
नैतिक शिक्षा: सच्ची भक्ति और समर्पण से हर असंभव काम संभव हो सकता है। नंदी की भक्ति ने उसे अमर बना दिया और भगवान शिव का सबसे प्रिय गण बनाया।