काली माता की शक्ति: आत्मविश्वास की विजय? | Kali Mata Story

गांव के एक छोटे से कोने में अनिका नाम की एक साधारण-सी लड़की रहती थी। उसका सांवला रंग उसकी सबसे बड़ी पहचान बन चुका था, लेकिन उसकी आंखों में चमक और हाथों में हुनर की कोई कमी नहीं थी। पढ़ाई में अव्वल, सिलाई-कढ़ाई में निपुण और घर के हर काम में पारंगत होने के बावजूद, समाज उसे केवल उसके गहरे रंग से आंकता था।

एक दिन अनिका किसी काम से बाजार जा रही थी। रास्ते में दो लड़कों ने उसे घेरकर मजाक उड़ाया, “अरे, देखो! इतनी काली लड़की… इसके आगे तो अंधेरा भी रोशन लगने लगे!” उनके शब्द अनिका के दिल में तीर की तरह चुभे। उसने कुछ नहीं कहा। चुपचाप घर लौट आई और अपने कमरे में बंद होकर रोने लगी। उसकी मां सुमित्रा ने जब उसे इस हाल में देखा तो धीरे से उसके पास आईं। “बेटी, क्यों ऐसे गुमसुम बैठी हो? शाम को लड़के वाले आ रहे हैं। तैयार हो जाओ।”

अनिका ने रुंधे हुए गले से कहा, “क्या फायदा, मां? मुझे पता है, वो लोग भी मेरे रंग का मजाक उड़ाकर लौट जाएंगे। हर बार यही होता है। मुझे नहीं लगता कि मेरी किस्मत में कभी कोई खुशी लिखी है।”

सुमित्रा ने उसकी आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा, “बेटी, लोग आंखों से देख सकते हैं, पर दिल से समझ नहीं सकते। मैं जानती हूं, एक दिन कोई ऐसा आएगा जो तेरे मन की सुंदरता को पहचानेगा।”

शाम को रिश्ता लेकर एक परिवार आया। लड़के के पिता ने आते ही कहा, “सरपंच जी ने बहुत तारीफ की थी आपकी बेटी की।” अनिका को बड़ी उम्मीदों के साथ सामने लाया गया। लेकिन जैसे ही लड़के वालों ने उसे देखा, उनके चेहरे पर नापसंदगी साफ झलकने लगी। “क्या सुंदर लड़कियों का अकाल पड़ गया है, जो हमारे बेटे के लिए इसे चुना जाए?” वे यह कहकर उठे और बिना कुछ सुने चले गए।

अनिका के पिता का दिल टूट गया। उन्होंने अपने चेहरे को हाथों में छुपा लिया और सुमित्रा उन्हें संभालने की कोशिश करने लगीं। यह दृश्य अनिका से सहन नहीं हुआ। वह घर से बाहर निकलकर गांव की नदी के किनारे जा बैठी।

नदी का किनारा अनिका का प्रिय स्थान था। वह अक्सर यहां आकर अपनी उदासी को पानी में बहा दिया करती थी। उस दिन भी उसने मछलियों से बातें करते हुए कहा, “क्या मेरी गलती सिर्फ मेरा रंग है? अगर यही सच है तो मैं इस दुनिया में क्यों हूं?”

उसी वक्त पानी में हलचल हुई। एक छोटी-सी मछली पानी से बाहर उछली और अपने मुंह में एक चमचमाती मूर्ति किनारे पर छोड़ गई। अनिका ने धीरे-से मूर्ति को उठाया। यह माँ काली की मूर्ति थी। मूर्ति से तेज प्रकाश निकल रहा था। अनिका की आंखें उस प्रकाश से भर गईं।

“आप भी तो काली हैं, माँ। लेकिन फिर भी दुनिया आपकी पूजा करती है। मुझे क्यों ठुकराया जा रहा है?” उसकी आंखों से आंसू गिरते रहे, लेकिन धीरे-धीरे उसने खुद को संभाला। मूर्ति को अपने दुपट्टे में लपेटा और घर लौट आई।

घर आकर उसने माँ काली की मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया और निष्ठा से उनकी पूजा करने लगी। रोज सुबह और शाम वह माँ काली की भक्ति में लीन रहती। धीरे-धीरे उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक लौट आई। उसका हृदय पहले से अधिक दृढ़ हो गया।

कुछ महीनों बाद गांव में महामारी फैल गई। उल्टी, दस्त और डायरिया ने गांव को अपनी चपेट में ले लिया। शहर से डॉक्टरों की टीम गांव में आई, जिसका नेतृत्व डॉक्टर अंकित कर रहे थे।

अनिका ने डॉक्टर अंकित से कहा, “सर, मैं आपकी मदद करना चाहती हूं। मेरा सपना था डॉक्टर बनने का, लेकिन हालातों ने मुझे ऐसा नहीं करने दिया। मुझे मौका दीजिए, मैं सेवा करना चाहती हूं।”

डॉक्टर अंकित उसकी बातों से प्रभावित हुए और उसे काम में लगा लिया। अनिका ने अपनी सहेलियों को भी बुलाया और सभी ने मिलकर मरीजों की सेवा की। दिन-रात उन्होंने मेहनत की और कुछ ही समय में महामारी पर काबू पा लिया गया।

डॉक्टर अंकित ने अनिका की तारीफ करते हुए कहा, “आपने जो किया है, वह कोई करोड़पति भी नहीं कर सकता। आपने साबित कर दिया कि असली सुंदरता मन की होती है, चेहरे की नहीं।”

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डॉक्टर अंकित ने गांव छोड़ने से पहले अनिका के माता-पिता से कहा, “मैं आपकी बेटी से शादी करना चाहता हूं और उसका सपना पूरा करना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि वह डॉक्टर बने।”

अनिका के माता-पिता की आंखों से आंसू छलक पड़े। अनिका ने यह सब सुना और माँ काली की मूर्ति के सामने खड़ी होकर बोली, “माँ, आपने मेरी झोली खुशियों से भर दी। आपने मुझे नया जीवन दिया।”

उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक थी और आंखों में सुकून। माँ काली के आशीर्वाद से अनिका का जीवन पूरी तरह बदल चुका था।

शिक्षा: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि असली सुंदरता रंग-रूप में नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, निष्ठा और मन की पवित्रता में होती है। ईश्वर हर किसी को अवसर देता है, बस हमें खुद पर विश्वास रखना चाहिए।

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