एक दिन, अयोध्या के महल में हनुमान जी माता सीता के पास बैठे थे। सीता माता मांग में सिंदूर लगा रही थीं। हनुमान जी ने जिज्ञासा से पूछा, “माता, आप अपनी मांग में सिंदूर क्यों लगाती हैं?”
माता सीता मुस्कुराईं और बोलीं, “यह सिंदूर मैं प्रभु श्रीराम की लंबी आयु और उनकी रक्षा के लिए लगाती हूं।”
यह सुनते ही हनुमान जी गहरी सोच में पड़ गए। फिर बिना किसी को कुछ बताए, वे महल से बाहर निकले। कुछ देर बाद, हनुमान जी पूरे शरीर पर सिंदूर पोते हुए वापस आए।
दरबार में हनुमान जी का यह अनोखा रूप देखकर सभी लोग हंसने लगे। श्रीराम ने हनुमान जी से पूछा, “हनुमान, ये तुमने क्या किया है?”
हनुमान जी ने मासूमियत से कहा, “प्रभु, जब माता सीता की एक चुटकी सिंदूर से आपकी आयु लंबी हो सकती है, तो मैंने सोचा, क्यों न मैं पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लूं? इससे आपकी आयु अनंत हो जाएगी!”
श्रीराम हनुमान जी की भक्ति और प्रेम को देखकर भावुक हो गए। उन्होंने हनुमान जी को गले से लगा लिया और कहा, “हनुमान, तुम्हारी भक्ति अद्वितीय है। तुम मेरे सच्चे भक्त हो।”
शिक्षा: भक्ति में न कोई छल होता है, न कोई स्वार्थ। यह केवल प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। सच्चा भक्त अपनी भक्ति में डूबा रहता है, चाहे लोग उसे समझें या न समझें।