हमने “पतिव्रता चंचला का उद्धार” कहानी में पढ़ा कि कैसे चंचला ने शिव पुराण सुनने के मार्ग से अपने सभी पापों से मुक्ति पाई।
इस कहानी में हम देखेंगे कि चंचला ने अपने पति बिंदु, जो पिशाच योनि में भटक रहा था, को किस तरह शिव पुराण के प्रभाव से मुक्त किया। यह कथा हमें भगवान शिव की अनंत कृपा और एक पतिव्रता नारी की अटूट भक्ति का अद्भुत प्रमाण देती है।
चलिए, इस प्रेरणादायक कथा के माध्यम से जानें कि भक्ति, समर्पण और शिव पुराण का श्रवण कैसे किसी को भी जीवन के सबसे कठिन कष्टों से मुक्ति दिला सकता है।
शिवधाम प्राप्त करने के बाद भी चंचला अपने पति बिंदु की दुर्दशा को लेकर चिंतित रहती थी। वह भगवान शिव और माता पार्वती की सेवा में लगी रहती, लेकिन मन में हमेशा अपने पति की पीड़ा का विचार किया करती। बिंदु, जो अपने जीवन में पापमय कार्यों में लिप्त था, अब पिशाच योनि में भटक रहा था।
एक दिन, चंचला ने माता पार्वती के चरणों में सिर झुका कर निवेदन किया। उसने माता से अपने पति के वर्तमान स्थिति के बारे में जानने की विनती की। माता पार्वती, जो सदैव करुणामयी और भक्तों की सहायक हैं, ने उसे बिंदु की स्थिति बताई।
माता पार्वती ने बताया कि बिंदु ने ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बावजूद अपने कर्तव्यों का त्याग कर दिया था। वह वेश्याओं के संपर्क में रहता था और अपने धर्म-कर्म को भूल गया था।
माता ने कहा: तुम्हारे पति ने स्नान, संध्या वंदन, और पूजा जैसे धार्मिक कार्यों का परित्याग कर दिया। वह मद्यपान और अपवित्र भोजन का सेवन करता था। उसने निर्दोष लोगों को सताया, उनके घर जलाए और हिंसा की। लोभ, छल और दुर्व्यवहार उसका स्वभाव बन गया था। अपने पापों के कारण, उसने पतिव्रता पत्नी चंचला को भी त्याग दिया और अन्य स्त्रियों के साथ अनुचित संबंध बनाए। ये सब पाप उसे पिशाच योनि में ले गए। अब वह विंध्याचल पर्वत पर भटक रहा है और अत्यंत दुख सह रहा है।
चंचला ने माता पार्वती से प्रार्थना की कि वह उसके पति के उद्धार का कोई उपाय बताएं। माता पार्वती ने करुणा से कहा: “अगर तुम्हारा पति शिवपुराण की कथा सुन लेता है, तो उसके सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और उसे मोक्ष प्राप्त होगा।”
इसके बाद माता पार्वती ने गंधर्वराज तुंबुरु को बुलाया और उन्हें विंध्याचल पर्वत पर जाकर बिंदु को शिवपुराण की कथा सुनाने का आदेश दिया।
माता की आज्ञा पाकर तुंबुरु ने माता से पूछा: “हे माता, कृपया मुझे यह बताइए कि बिंदु ने कौन-कौन से पाप किए थे, जिनके कारण उसे पिशाच योनि प्राप्त हुई?”
माता पार्वती ने विस्तार से बिंदु के पापों का वर्णन किया और कहा कि वह अब विंध्याचल पर्वत पर भटक रहा है।
जब चंचला ने माता पार्वती की यह आज्ञा सुनी, तो उसने हर संभव प्रयास किया कि शिवपुराण की कथा उसके पति को सुनाई जाए। इस दौरान यह बात पूरे इलाके में फैल गई कि शिवपुराण की कथा के माध्यम से पिशाच का उद्धार किया जाएगा।
लोगों में यह सुनकर बड़ी उत्सुकता जागी और वे भी शिवपुराण की कथा सुनने के लिए इकट्ठा होने लगे।
तुंबुरु विंध्याचल पर्वत पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने बिंदु को देखा, जो एक पिशाच के रूप में अत्यंत भयानक और दुखद स्थिति में था। उसका रूप डरावना था—कभी वह जोर से हँसता, कभी रोता, और कभी अजीब हरकतें करता।
तुंबुरु ने उसे बाँधा और शिवपुराण की कथा सुनानी शुरू की। जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ी, बिंदु के पाप धुलने लगे। कथा समाप्त होते-होते, बिंदु का भयानक रूप दिव्य स्वरूप में बदल गया।
उसकी काया स्वर्णिम हो गई, उसने श्वेत वस्त्र धारण किए, और उसका चेहरा तेजस्वी हो गया। उसका हृदय पवित्र हो चुका था।
दिव्य स्वरूप धारण करने के बाद, तुंबुरु ने बिंदु को शिवधाम पहुँचाया। शिवधाम में भगवान शिव और माता पार्वती ने उसका स्वागत किया।
भगवान शिव ने बिंदु को अपना अनुचर बना लिया, और माता पार्वती ने चंचला को अपनी सखी का स्थान दिया। अब दोनों, पति और पत्नी, शिवधाम में अनंत सुख और शांति का अनुभव करने लगे।
शिक्षा: शिवपुराण की कथा सुनने से सबसे बड़ा पापी भी मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
“शिवपुराण केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि मोक्ष का द्वार है। इसका श्रवण आत्मा को शुद्ध करता है और पापों का नाश करता है।”
हर हर महादेव! 🚩✨
अगले अध्याय में फिर मिलेंगे। धन्यवाद! 🌺