ये उस समय की बात है, जब घने वनों में सूरज की सुनहरी किरणें पेड़ों की पत्तियों से छनकर धरती पर बिखर रही थीं। चिड़ियों की मधुर चहचहाहट और हवा का सायं-सायं स्वर वातावरण को और भी रमणीय बना रहा था। उसी वन में भगवान श्री राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता की खोज में भटक रहे थे।
रावण ने सीता का हरण कर लिया था, और श्री राम के हृदय में वियोग की आग धधक रही थी। इसी पवित्र क्षण में, भक्ति और प्रेम का एक अनुपम मिलन होने वाला था—श्री राम और उनके परम भक्त हनुमान का।
हनुमान जी, जो सुग्रीव के विश्वस्त मंत्री और श्री राम के अनन्य भक्त थे, उस दिन एक अनोखा विचार लेकर आए। उन्होंने मन में ठाना, “पहले इनकी परीक्षा लूँ, फिर प्रभु को पहचानूँ।” ब्राह्मण का वेश धारण कर, वे श्री राम के सामने आए। उनकी आँखों में भक्ति की चमक थी, पर चेहरा शांत और रहस्यमय।
हनुमान ने नम्र स्वर में पूछा, “हे ब्राह्मण! आप कौन हैं? आपके कोमल चरण इस कठोर वन में क्यों भटक रहे हैं? क्या आप कोई देवता हैं—ब्रह्मा, विष्णु या महेश? या शायद नर-नारायण का अवतार?” हनुमान यह जानना चाहते थे कि क्या ये वही प्रभु हैं, जिनके लिए उनका मन तड़पता था।
श्री राम हल्के से मुस्कुराए। उनकी आँखों में करुणा और प्रेम का सागर लहरा रहा था। वे समझ गए कि यह उनका भक्त हनुमान है, जो छल से उनका परिचय जानना चाहता है। शांत स्वर में बोले, “हम कोई देवता नहीं। मैं अयोध्या के राजा दशरथ का पुत्र राम हूँ। मेरे साथ मेरे भाई लक्ष्मण हैं। मेरी पत्नी सीता को किसी ने हरण कर लिया है। हम उनकी खोज में हैं। अब तुम बताओ, तुम कौन हो?”
हनुमान के हृदय में प्रभु के शब्द बिजली-से कौंध गए। वे तुरंत समझ गए कि ये स्वयं श्री राम हैं। ब्राह्मण का वेश त्यागकर, वे अपने असली रूप में आए और प्रभु के चरणों में लोट गए। “प्रभु, मैं आपका दास हनुमान हूँ। मुझे क्षमा करें, मैंने अज्ञान में आपका परिचय पूछ लिया।” उनकी आँखों से प्रेम के आँसू बह रहे थे।
श्री राम ने हनुमान को प्यार से उठाया और हृदय से लगाया। बोले, “हनुमान, तुम मुझे बहुत प्रिय हो। मैं तुम्हें लक्ष्मण से भी दोगुना प्रेम करता हूँ।” यह सुनकर लक्ष्मण को थोड़ा आश्चर्य हुआ। श्री राम ने समझाया, “लक्ष्मण, तुम मेरे पुराने साथी हो। हनुमान अभी मेरी शरण में आए हैं। जैसे माँ नवजात शिशु को अधिक लाड़ देती है, वैसे ही मैं हनुमान को प्रेम दे रहा हूँ।”
हनुमान ने श्री राम को सुग्रीव के पास ले जाने का निश्चय किया। सुग्रीव वन में छिपे थे, क्योंकि उनके भाई बाली ने उन्हें राज्य से निकाल दिया था। हनुमान ने श्री राम और सुग्रीव की मित्रता कराई। श्री राम ने वचन दिया, “मैं बाली को मारकर तुम्हें तुम्हारा राज्य वापस दिलाऊँगा। बदले में तुम सीता की खोज में मेरी मदद करना।”
सुग्रीव ने अपनी व्यथा सुनाई। बोले, “प्रभु, बाली मेरा बड़ा भाई है। एक बार वह राक्षस मायावी को मारने गुफा में गया। मैं बाहर इंतजार करता रहा। जब गुफा से खून की धारा बही, तो मैंने सोचा बाली मर गया। मैंने गुफा का मुँह बंद किया और किष्किंधा लौट आया। वहाँ मंत्रियों ने मुझे राजा बना दिया। पर बाली जीवित था। लौटकर उसने मुझे शत्रु समझा और सब कुछ छीन लिया। अब मैं इस पहाड़ पर छिपा हूँ।”
श्री राम ने सुग्रीव को आश्वासन दिया। उन्होंने बाली का वध किया और सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाया। सुग्रीव ने अपनी वानर सेना को सीता की खोज में भेजा। इस तरह, हनुमान के प्रयास से श्री राम और सुग्रीव का गठबंधन हुआ।
संदेश: यह कहानी सच्ची भक्ति की मिसाल है। भगवान अपने भक्तों को हमेशा अपनाते हैं, चाहे वे किसी भी रूप में हों। हनुमान की तरह हमें भी निस्वार्थ भाव से प्रभु की सेवा करनी चाहिए। जो भगवान को याद करता है, भगवान उसे कभी नहीं भूलते।